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वित्तीय बाज़ार के सुधार बाज़ार की कुशलता और एकीकरण सुधारने में सहायक

वित्तीय बाज़ार के सुधार बाज़ार की कुशलता और एकीकरण सुधारने में सहायक

29 जनवरी 2001

1998-99 में पहली बार ऐसा हुआ था कि मुद्रा और वित्त की रिपोर्ट की रूपरेखा इस तरह से बनायी गयी थी कि विस्तृत विश्लेषण के लिए एक ही विषय को थीम के रूप में लिया गया था। उस रिपोर्ट पर जो अभिमत मिले थे, वे आमतौर पर अनुकूल थे। इस गतिविधि से उत्साहित होकर 1999-2000 के लिए रिपोर्ट इस तरह से परंपरा की नींव उालने की दृष्टि से तैयार की गयी है कि महत्ता की दृष्टि से समसामायक मूल्य की थीम का चयन किया गया है। थीम आधारित नज़रिया चुनने का लक्ष्य यह है कि उन मामलों पर गहन नीति उन्मुखी अनुसंधान किया जा सके जो चयनित थीम के विश्लेषणात्मक व्यवहार और अनुभवजन्य पड़ताल के उभर कर सामने आते हैं और इन विश्लेषणों को सार्वजनिक अधिकार क्षेत्र में डाला जा सके ताकि पाठकों को मौजूदा समय की पृष्ठभूमि में विषय का एक व्यापक, संतुलित तथा गहन मूल्यांकन दिया जा सवे।

नब्बे का दशक तर्कसंगत रूप में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए वित्तीय क्षेत्र का ही दशक रहा है। वित्तीय क्षेत्र के सुधारों का एक अभिन्न तत्व वित्तीय बाज़ारों का क्रमिक रूप से विकास रहा है। बाज़ार प्रक्रियाओं में नीतिगत दखल धीरे-धीरे इस रूप में अपनाये गये कि बाज़ारों के विकास से जुड़े कुशलता संबंधी लाभ उठाये जा सकें। लेकिन वित्तीय विकास सतत बनाये रखी जानेवाली वृद्धि के लिए एक आवश्यक शर्त मात्र है और किसी भी स्थिति में यही पर्याप्त नहीं है। सार्वजनिक नीति निर्माण में वित्तीय स्थिरता को भी केंद्र में रखने की ज़रूरत होती है। भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए वित्तीय क्षेत्र के कार्य चालन की महत्ता को देखते हुए रिपोर्ट की मुख्य थीम "वित्तीय क्षेत्र तथा बाज़ार एकीकरण" चुनी गयी है।

चूंकि पिछले वर्ष की रिपोर्ट की थीम, ‘भारतीय अर्थव्यवस्था का ढांचागत कायाकल्प’ को समर्पित की गयी थी और चूंकि उसमें शामिल अवधि आठवें दशक की थी, वर्ष 1998-99 के लिए मैक्रो गतिविधियों की समीक्षा अपने आप ही थीम के रूप में ले ली गयी थी। अलबत्ता, चूंकि इस वर्ष की रिपोर्ट की थीम वित्तीय क्षेत्र तथा बाज़ार एकीकरण पर केंद्रित है, 1999-2000 तथा 2000-2001 (अद्यतन उपलब्ध अवधि तक) के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था का अवलोकन थीम के विश्लेषण से प्रमुख हो जाता है।

1991 व9े मध्य से वित्तीय क्षेत्र की सेवाओं में जो गति आयी थी उससे भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि और विकास को न केवल बल मिला, बल्कि इससे वित्तीय बाज़ारों में कुशलता और एकीकरण सुधारने में भी सहायता मिली है। इन पहलुओं को आज भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी मुद्रा और वित्त

संबंधी रिपोर्ट 1999-2000 में रेखांकित किया गया है। रिपोर्ट रिज़र्व बैंक की वेबसाईट www.rbi.org.in पर भी उपलब्ध है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में मौजूदा मैक्रो इकॉनामिक तथा वित्तीय गतिविधियाँ अर्थव्यवस्था के कार्य व्यापार में वित्तीय क्षेत्र की बढ़ती हुई भूमिका तथा वित्तीय बाज़ारों में बढ़ते हुए एकीकरण को रेखांकित करती हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में वित्तीय क्षेत्र की कार्य व्यापार की महत्ता को देखते हुए रिपोर्ट ने ‘वित्तीय क्षेत्र तथा बाज़ार एकीकरण’ पर अपना ध्यान केन्द्रित किया है और इस बात का प्रयास किया है कि हाल ही की आर्थिक गतिविधियों की समग्र समीक्षा की जा सके।

रिपोर्ट में वित्तीय गतिविधियां, वित्तीय बाज़ार ढांचा, वित्तीय एकीकरण तथा कुशलता और साथ ही भारत के संदर्भ में वित्तीय स्थिरता से जुड़े मामलों का विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट में संकेतों का एक वृहत् स्पैक्ट्रम दिया गया है जो यह दर्शाता है कि तीन दशकों के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था कितनी अधिक गहरी होती चली गयी है। वित्त के दो सबसे बड़े स्रोतों अर्थात् मध्यस्थ आधारित तथा बाज़ार आधारित स्रोतों में से

के दशक में बाज़ार आधारित वित्त का अपेक्षाकृत महत्व बढ़ता रहा है, फिर भी वित्तपोषण का मुख्य स्रोत मध्यस्थ आधारित रहा है। परिणाम यह दर्शाता है कि वित्तीय गतिविधियाँ और आर्थिक वृद्धि ने भी एक दूसरे को आगे बढ़ाया है।

रिपोर्ट में 90 के दशक के दौरान सामने आयी विभिन्न वित्तीय बाज़ारों के ढांचे की भी चर्चा की गयी है। उन्मुखी अर्थव्यवस्था में अलग थलग बाज़ारों ने आनेवाले सार्वजनिक वित्त के पोषण में न केवल बाधा डाली, बल्कि स्रोतों के कम उच्च आदर्श आबंटन को भी बढ़ावा दिया है। इस रिपोर्ट में प्रस्तुत आंकड़े यह दर्शाते हैं कि भारत में वित्तीय बाज़ार जो बहुत लम्बे अरसे तक अलग-थलग बने रहे स्वदेशी और आंतर्राष्ट्रीय दोनों रूप में 90 वें दशक में शुरू किये गये वित्तीय क्षेत्र के सुधारों के बाद तेजी से एकीकृत हो रहे हैं। इसमें बाज़ार दरों के मीयादी ढांचे और ब्याज दर तथा अन्य आस्ति मूल्यों के बीच के संदर्भ में देशी वित्तीय बाज़ार के एकीकरण का भी विश्लेषण किया गया है। व्यापार और वित्त के खुलेपन के और साथ ही मानक आंतर्राष्ट्रीय समता स्थितियों के विभिन्न क्षेत्रों के ज़रिए सीमा के आर-पार एकीकरण का भी अध्ययन किया गया है।

भारतीय वित्तीय क्षेत्र में स्थिरता सुनिश्चित करने की दृष्टि से अलग-अलग कई तरह के उपाय अपनाये गये है। रिपोर्ट में विवेकशील संकेतक, नीति विश्वसनीयता तथा पारदर्शिता के अपेक्षित स्तरों को प्राप्त करने के लिए नीति के प्रत्युत्तर का भी विश्लेषण किया गया है। वित्तीय स्थिरता पर असर करनेवाले राजकोषीय वित्तीय मामलों के भी पड़ताल की गयी है। रिपोर्ट ने यह पाया है कि जोखिम भारित आस्ति अनुपात की तुलना में अनिवार्य पूंजी के साथ भारतीय वित्तीय व्यवस्था काफ़ी स्थिर है। सीआरएआर वर्ष 1999-2000 के अंत की स्थिति के अनुसार निजी क्षेत्र के भारतीय बैंकों साथ ही साथ राष्ट्रीयकृत बैंकों के लिए 11.0 प्रतिशत से अधिक रहा। अलबत्ता कुछ बैंकों में तथा कुछेक वित्तीय संस्थाओं में अनर्जक ऋणों के ऊंचे स्तर और कुछ गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों में कमज़ोर अनुशासन को और अध्िाक कड़े पर्यवेक्षी तथा विनियामक प्रणाली द्वारा विनियामकों के ज़रिये नियंत्रण में लाया जा रहा है।

रिपोर्ट में वित्तीय क्षेत्र की कुशलता की विशेष रूप से बैंकिंग क्षेत्र के संदर्भ में पड़ताल की गयी है। इसने पाया है कि वित्तीय बाज़ारों में विनियम कम करने, प्रौद्योगिकी के आगे बढ़ने, वित्तीय सेवा दाताओं के बीच भेदभाव के कम होने और बाज़ार के एकीकरण के परिणामस्वरूप प्रतिस्पर्धात्मक दबावों से बाज़ार तथा वित्त संस्थाओं दोनों की कुशलता में सुधार आया है। इस बात के कुछ प्रमाण है कि भारत में स्टॉक तथा विदेशी मुद्रा बाज़ार अंतर्राष्ट्रीय रूप से और अधिक कुशल होते चले जा रहे हैं। अलबत्ता शोर-शराबे वाले कुछ व्यापारियों की मौजूदगी से बाज़ार कुशलता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। लेकिन इलेक्ट्रॉनिक भुगतान प्रणाली में आये सुधारों के कारण लेन देन की लागतों को कम करने और कुशलता बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान मिलने की संभावना है।

रिपोर्ट में हाल ही की मॅक्रो इकॉनामिक गतिविधियों की समीक्षा की गयी है। रिपोर्ट में यह दर्शाया गया है कि 1999-2000 में 6.4 प्रतिशत पर वास्तविक सकल देशी उत्पाद वृद्धि नौवें दशक के दौरान प्राप्त औसत के बराबर (1991-92 समायोजन के वर्ष को छोड़कर) रही। 1999-2000 की वृद्धि निष्पादकता स्थिर परिवेश के दौरान हुई है। वर्ष के दौरान भारत में वित्तीय बाज़ार आम तौर पर स्थिर बने रहे। वित्तीय बाज़ारों के अलग-अलग खंडों से एकीकरण की दिशा में बढ़ती हुई प्रवृत्ति दर्शायी है । इसे मूल्य और पण्यावर्त की गतिविधि के रूप में देखा जा सकता है। चालू वित्तीय अर्थव्यवस्था के दौरान मुद्रा बाजॉर स्थितियों पर चालू मुद्रा और चालू बाज़ार और नीति के संबंध में रिज़र्व बैंक द्वारा स्थिरता लाने के लिए अपनायी गयी अल्पकालिक गतिविधियाँ हावी रहीं। हाल ही में शुरू की गयी चलनिधि समायोजन सुविधा ने बाज़ार स्थितियों को ठीकठाक बनाये रखने में सहायता दी है।

यह रिपोर्ट नि:संदेह रिज़र्व बैंक के अर्थशास्त्रियों द्वारा तैयार किया गया अनुसंधान दस्तावेज़ है। इस संबंध में बैंक अभिमतों तथा सुझावों का सहर्ष स्वागत करेगा।

अल्पना किल्लावाला
महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2000-01/1085

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