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ईक्विटियों तथा शेयरों में निवेश के वित्तपोषण

ईक्विटियों तथा शेयरों में निवेश के वित्तपोषण
के संबंध में दिशा-निर्देशों में प्रस्तावित संशोधन

23 अप्रैल 2001

10 नवंबर 2000 को रिज़र्व बैंक ने पूंजी बाज़ारों में बैंकों के निवेशों तथा अग्रिमों के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किये थे। उस समय की गयी घोषणा के अनुसार इन दिशा-निर्देशों पर कार्य की रिज़र्व बैंक-सेबी तकनीकी समिति द्वारा समीक्षा की गयी है। समिति की रिपोर्ट रिज़र्व बैंक को 12 अप्रैल 2001 को प्रस्तुत की गयी थी और उसे उसी दिन विशेषज्ञों, बाज़ार प्रतिभागियों तथा अन्यों के अभिमतों/सुझावों के लिए जारी कर दिया गया था। (रिपोर्ट रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर भी उपलब्ध है)

2. तकनीकी समिति की रिपोर्ट की सिफारिशों के आलोक में तथा प्राप्त अभिमतों को देखते हुए रिज़र्व बैंक नवम्बर 2000 में जारी दिशा-निर्देशों में निम्नलिखित संशोधनों का प्रस्ताव करता है:

  1. पूंजी बाज़ार में लगायी जानेवाली समग्र राशि (एक्सपोज़र) की उच्चतम सीमा

3. नवम्बर 2000 के दिशा-निर्देशों में निर्धारित 5 प्रतिशत की उच्चतम सीमा अब से सभी रूपों में स्टॉक बाज़ारों में बैंक के कुल एक्सपोज़र पर लागू होगी।अधिकतम सीमा में निम्नलिखित शामिल होंगे:

(क) बैंकों द्वारा ईक्विटी शेयरों, परिवर्तनीय डिबेंचरों तथा ईक्विटी उन्मुखी म्युच्युअल फंडों की यूनिटों में प्रत्यक्ष निवेश;

(ख) शेयरों तथा डिबेंचरों पर अग्रिम; तथा

(ग) दलालों की तरफ से जारी की गयी गारंटियाँ।

4. पांच प्रतिशत की अधिकतम सीमा की गणना पिछले वर्ष के 31 मार्च की स्थिति के अनुसार कुल अग्रिमों के संदर्भ में (वाणिज्यिक पत्रों सहित) की जायेगी। यह स्पष्ट किया जाता है कि बैंकों द्वारा गैर-परिवर्तनीय डिबेंचरों तथा अन्य इसी तरह की विलेखों (वाणिज्यिक पत्रों को छोड़कर) में गैर-निधि आधारित सुविधाओं को बैंक के समग्र ऋण पोर्टफोलियो की गणना करते समय शामिल नहीं किया जाना चाहिए। इसके अलावा पांच प्रतिशत के मानदंड की गणना करने के लिए बैंकों द्वारा शेयरों में प्रत्यक्ष निवेशों की, शेयर प्राप्त करने के समय बैंकों द्वारा अदा किये गये मूल्य पर गणना की जायेगी।

(ii) बैंक के निवेशों/अग्रिमों का कुछ ही स्टॉक ब्रोकिंग इकाइयों में जमाव से बचना

5. तकनीकी समिति का एक महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष यह था कि हालांकि पूंजी बाज़ार में बैंकों का समग्र एक्सपोज़र कुल अग्रिमों के 1.76 प्रतिशत के न्यून स्तर पर ही बना हुआ है, अपेक्षाकृत कुछ छोटे बैंकों ने (कुल बैंक ऋण में उनके हिस्से को देखते हुए) जोखिम प्रबंध दिशा-निर्देशों का यथोचित रूप से पालन नहीं किया। यह विशेष रूप से कुछेक स्टॉक ब्रोकिंग इकाइयों (उनकी सहयोगी तथा आपस में जुड़ी कंपनियों सहित) को गारंटियां जारी करने तथा शेयरों पर अग्रिम देने के संबंध में देखने में आया। आपस में जुड़ी कुछ स्टॉक ब्रोकिंग कंपनियों तथा कुछ बैंकों के प्रमोटरों/प्रबंधकों के बीच इस तरह की सांठ-गांठ से बचने के लिए तकनीकी समिति ने सिफारिश की है कि -

(क) प्रत्येक बैंक को पांच प्रतिशत की समग्र उच्चतम सीमा के भीतर सभी स्टॉक ब्रोकरों तथा बाज़ार के खिलाड़ियों (निधि आधारित और गैर-निधि आधारित अर्थात् गारंटियां, दोनों) को समग्र अग्रिमों के लिए एक उप-उच्चतम सीमा निर्धारित करनी चाहिए।

(ख) किसी एकल स्टॉक ब्रोकिंग इकाई, उसके सहयोगियों /आपस में जुड़ी कंपनियों सहित, को किसी बैंक द्वारा मंजूर की गयी कुल निधि आधारित तथा गैर-निधि आधारित सुविधाएँ सभी स्टॉक-ब्रोकरों को कुल अग्रिमों के लिए ऊपर (क) में दी गयी उप-उच्चतम सीमा के 10 प्रतिशत के विवेकशील मानदंड से अधिक नहीं होनी चाहिए।

6. यह प्रस्ताव है कि सभी स्टॉक ब्रोकरों को और साथ ही किसी एकल स्टॉक ब्रोकर (और जुड़े हुए उद्यम) को कुल अग्रिमों के लिए ऊपर बतायी गयी (क) तथा (ख) पर उप उच्चतम सीमाएँ निर्धारित करने का विवेक बैंकों के बोर्डों पर छोड़ दिया जाये जो अलबत्ता, तकनीकी समिति की ऊपर बतायी गयी सिफारिशों को ध्यान में रखें।

7. किसी भी सांठ-गांठ को बनने से रोकने के लिए एक और रक्षोपाय के रूप में यह प्रस्ताव है कि एक तरफ शेयरों पर वास्तविक अग्रिम देने /शेयरों में निवेशों पर और दूसरी ओर बैंक द्वारा वास्तविक अग्रिमों/शेयरों में निवेश की पड़ताल और निगरानी करने के लिए निर्णय लेने के उत्तरदायित्व में स्पष्ट विभाजन होना चाहिए। यह वांछनीय होगा कि यदि बैंक के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक/मुख्य कार्यपालक अधिकारी को बादवाला उत्तरदायित्व सौंपा जाता है और उसे निवेश समिति का सदस्य नहीं रखा जाता। इस व्यवस्था के अंतर्गत शेयरों में निवेश पर सिफारिशें निवेश समिति द्वारा की जानी चाहिए और इसकी अध्यक्षता कार्यपालक निदेशक द्वारा अथवा पूर्णकालिक निदेशक द्वारा अथवा उसके बाद के वरिष्ठ अधिकारी द्वारा की जानी चाहिए और इसमें अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक/मुख्य कार्यपालक अधिकारी को शामिल नहीं विया जाना चाहिए। अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक/मुख्य कार्यपालक अधिकारी को चाहिए कि वह निवेश समिति से प्राप्त साप्ताहिक/पाक्षिक रिपोर्टों के ज़रिए निवेशों की समीक्षा करे और यह सुनिश्चित करे कि वास्तविक निवेश एवं शेयरों पर अग्रिम रिज़र्व बैंक/बैंक के बोड़ द्वारा निर्धारित विवेकशील मानदंडों के अनुरूप हैं। अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक के पास पड़ताल एवं निगरानी और किये गये वास्तविक निवेशों/शेयरों पर अग्रिमों की बोड़ को रिपोर्ट करने की प्रबंधकीय जिम्मेवारी होनी चाहिए।

(ग) मार्जिन

8. नवम्बर 2000 के दिशानिर्देशों के अनुसार बैंकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे गारंटियां जारी करने के लिए न्यूनतम 25 प्रतिशत का नकदी मार्जिन, डीमैट शेयरों पर अग्रिमों के लिए 25 प्रतिशत का मार्जिन और प्रत्यक्ष रूप में शेयरों पर अग्रिमों के लिए 50 प्रतिशत का मार्जिन रखें। सेबी-रिज़र्व बैंक समिति ने सभी अग्रिमों/गारंटियों पर 50 प्रतिशत के एकसमान मार्जिन की सिफारिश की है । इसमें किसी स्टॉक ब्रोकिंग इकाई की ओर से गारंटियाँ जारी करने के लिए 25 प्रतिशत का न्यूनतम नकदी मार्जिन शामिल है। संशोधित दिशा-निर्देशों में यह प्रस्ताव है कि सभी अग्रिमों/गारंटियों पर 40 प्रतिशत का एकसमान मार्जिन निर्धारित किया जाये। इसमें बैंकों द्वारा जारी गारंटियों के संबंध में 20 प्रतिशत का न्यूनतम नकदी मार्जिन रहेगा जो स्टॉकों के मूल्यांकन में उतार-चढ़ावों को काबू में रखने में मदद करेगा।

(घ) एकल व्यक्तियों को अग्रिम

9. रिज़र्व बैंक-सेबी समिति ने सिफारिश की है कि शेयरों तथा डिबेंचरों की जमानत पर डीमैट रूप में अथवा भौतिक रूप में एकल व्यक्तियों को ऋण के रूप में मंजूर की जा सकनेवाली अधिकतम राशि 10 लाख रुपये से अधिक नहीं होनी चाहिए।

10. अलबत्ता, यह प्रस्ताव किया जाता है कि एकल व्यक्तियों के लिए

भौतिक रूप में शेयरों पर 10 लाख रुपये की अधिकतम उच्चतम सीमा तथा डीमैट शेयरों पर 20 लाख रुपये की अधिकतम उच्चतम सीमा के संबंध में मौजूदा दिशा-निर्देश इस परंतुक के साथ बनाये रखे जायें कि बैंक उसी परिवार के एक से अधिक सदस्यों के अथवा उसी निगम के कर्मचारियों के समूह को अथवा आपस में जुड़ी हुई उनकी इकाईयों को ऋण नहीं देंगे। इस तरह के ऋण वास्तविक एकल निवेशकों के लिए हैं और एकल व्यक्तियों के समूह द्वारा एक से अधिक ऋण लेने के लिए कपटपूर्ण कार्रवाई को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए।

ड़) संक्रमणकालीन प्रावधान (ट्रांज़िशनल प्रोविज़न)

11. जैसा कि उपर उल्लेख किया गया है, शेयर बाजार में अधिकतम मामलों में अग्रिम/निवेश, 5 प्रतिशत की समग्र उच्चतम सीमा से बहुत कम हैं। उक्त प्रस्तावों से पूंजी बाजार में बैंकों की सहायता में वृद्धि के पर्याप्त अवसर सामने आयेंगे तथा कुछ दलाल कंपनियों और प्रवर्तकों/बैंक के प्रबंधकों के बीच सांठ गांठ पनपने की संभावना न्यूनतम होगी।

ऐसे कुछ बैंकों, जिनका पूंजी बाजार में मौजूदा निवेश 5 प्रतिशत की समग्र उच्चतम सीमा से अधिक है, के संबंध में निम्नलिखित संक्रमणकालीन प्रावधान प्रस्तावित हैं :-

(क) इन बैंकों को चाहिए कि वे शेयर बाजारों के अपने निवेश संशोधित दिशानिर्देशों के अनुसार धीरे-धीरे कम करने के लिए एक समयबद्ध योजना बनायें। इस समयबद्ध योजना के साथ विभिन्न श्रेणियों के अग्रिम/गारंटियों के निवेश दर्शानेवाले आंकड़े रिज़र्व बैंक को 31 मई 2001 तक प्रस्तुत किये जाने चाहिए। उन्हें चाहिए कि वे इस बीच कोई नये अग्रिम न दें या गारंटियां जारी न करें।

(ख) प्रस्तावित 40 प्रतिशत की मार्जिन, 23 अप्रैल 2001 के बाद किये गये सभी अग्रिमों/गारंटियों पर लागू होगी। उस तारीख से पहले किये गये अग्रिमों के लिए जब तक नवीकरण के लिए उन्हें प्रस्तुत नहीं किया जाता, मौजूदा मार्जिन जारी रहेगा।

(ग) सभी बैंकों के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशकों/मुख्य कार्यपालक अधिकारियों को चाहिए कि वे अग्रिमों/गारंटियों के अपने मौजूदा संविभाग की समीक्षा करें और यदि कोई अग्रिम/गारंटियां उनके बोड़ द्वारा निर्धारित सीमाओं से बाहर हों या नवंबर 2000 को जारी दिशानिर्देशों का उल्लंघन करते हों तो वे जितनी जल्दी हो सकें, उन अग्रिमों/गांरटियों को कम करें। इस समीक्षा के अंतर्गत किसी विशिष्ट कंपनियों और उनकी पास में जुड़ी कंपनियों के पक्ष में किये गये अतिरिक्त अग्रिम/गारंटियों का भी समावेश होगा।

आशोधित दिशानिर्देशों की समीक्षा

12. तकनीकी समिति द्वारा किये गये प्रस्ताव के अनुसार छह महीनों के बाद आशोधित दिशानिर्देशों की पुन: समीक्षा की जायेगी। इस प्रयोजन के लिए बैंकों को चाहिए कि वे रिज़र्व बैंक को अक्तूबर 2001 तक निर्धारित फॉर्म में आंकड़े प्रस्तुत करें।

रिज़र्व बैंक-सेबी तकनीकी समिति की रिपोर्ट के साथ ये प्रारूप दिशानिर्देश बाजार सहभागियों, विशेषज्ञों और अन्यों के अभिमतों/सुझावों के लिए पुन: जारी किये जा रहे हैं। रिज़र्व बैंक के पास अभिमत निम्नलिखित पते पर तीन मई 2001 तक पहुंच जाने चाहिए।

श्री एम.आर श्रीनिवासन
प्रभारी मुख्य महाप्रबंधक
भारतीय रिज़र्व बैंक
बैंकिंग परिचालन और विकास विभाग,
केंद्रीय कार्यालय, विश्व व्यापार केंद्र,
कफ परेड, मुंबई - 400005
फैक्स # (022) 2183785

प्रस्ताव है कि अंतिम रूप से आशोधित दिशानिर्देश मई 2001 के प्रारंभ में जारी किये जायें।

अल्पना किल्लावाला
महाप्रबंधक

प्रेस प्रकाशनी : 2000-2001/1456

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